ऐक रोज़ साकी ने, बड़े अदाकारी से -
Tuesday, July 15, 2008
वादा
ऐक रोज़ साकी ने, बड़े अदाकारी से -
अकेला
- 15 July, 2007
मैं ख़्वाबों के इस बस्ति में
तन्हाँ रहना चाहता हूँ
जिंदगी के इस कश्ती में
बा-अकेला रहना चाहता हूँ।
मिले हैं मुझे कदम-हर-कदम
कोई न कोई हम-सफर, हम-दम
मैं उनके उन झूठे वादों से
बहुत दूर रहना चाहता हूँ।
नादाँ-ऐ-दिल को मैं कर बे-आबरू
जब कभी भी गया मिलने उनसे
ऐसे ज़ख्म दिए उन्होंने कि
मैं अब ज़हर पीना चाहता हूँ।
मजबूर-ऐ-हालत अब तो
काबू-ऐ-शिकस्त न हो पाती
जाम-ऐ-मस्त इस शाम में
मैं खोया रहना चाहता हूँ।
चोट
- 16 December, 2006
चोट किजिए तो करारी किजिए -
चाहे कातिल निगाहों से -
या मीठी अल्फाजों से,
जवानी की पुकार से -
या फ़िर निर्मल प्यार से
खूबसूरत अंदाजों से -
या जुबां-ऐ-कटार से -
क्योंकि - जीते जी अगर
नस नस में दर्द न हो,
तो जानूं तो कैसे जानूं
ज़िंदा लाश हूँ -
या सिर्फ़ एक ख्वाब हूँ?
जिंदगी
- 14 October, 2006
जिंदगी को मुझसे आँख मिचौनी
खेलने की आदत सी पढ़ गयी है,
में भी जिद्द पे सवार, अपने सर पे
कफ़न बाँध, उसे ढूँढता रहता हूँ।
सोचता हूँ किसी न किसी रोज़ तो उसे
मेरे रूबरू आना ही पड़ेगा,
वरना मौत के साए क्या मुझसे इस
गम के अँधेरे में ही मिलेंगे?
जिंदगी - तुझे पाने की उम्मींद में
दर दर भटक रहा हूँ
बेखुदी में कभी खुद पे, तो कभी
गैरों पे बरस रहा हूँ।
उम्मींदों के उजाले में मिल
में भी ज़रा खुली आँखों से
तुझे भरपूर निहारूं -
आज तक, मैंने तो तेरी हर ख्वाहिश को
गले से लगाया है
क्या अब भी मैं तेरे
गले लगाने के काबिल नहीं हूँ?
तन्हाई
- 11 September, 2006
वादों के उस अंजुमन में जब मैं तुझसे मिला
तेरे दर्पण में, मैंने ढेर सारे ख्वाब देखे
जिंदगी के हर एक साँस में तेरी खुशबु थी
तेरी छुवन ने मुझसे कहा - एक बार जी ले - फिर से।
रिश्तों के नाज़ुक धागों से बंधे हुए थे हम तुम
कहते भी तो क्या, और समझता भी कौन?
दिल की बातें दिल में ही रह गयी
लब खुले भी तो जुबां खामोश रही।
जीने की ख्वाइश भी थी, अपनों से प्यार भी था
दिन में काम काज कर लेता, शाम ढले तन्हाई आती
तेरे यादों में फिर से यह वीरान जिंदगी रंग जाती
और किसी पल थकान से टूटकर यह पलकें चूर हो जाती।
आज फिर वही खामोश रात, मिलने आई थी मुझसे
उसकी दस्तक में तेरे क़दमों की आहट थी
मेरे बिस्तर की सिलवटों को देख उसने पूछा
तेरे आंखों में यह अश्क किस खुशी के हैं?
महफिल
- 23 June, 2006
आज की रात कुछ न कुछ तो ज़रूर होना है
चंद लफ्जों में इक कहानी जो पिरोना है
कुछ गीत कुछ नग्मेँ मैं लाई हूँ तेरे लिए
आज तेरे मेरे ख़्वाबों को सच जो होना है ।
अब क्यों डरें अपने इज़हारे मुहब्बत से हम
चंद लम्हों में दुनिया - सपने सलोना है....
बस अब यूँ उठ के मत जाना इस महफिल से
इस रूह से रूह के अंजुमन में
तेरे एहसासों से रोशन हर एक कोना है
आज की रात कुछ न कुछ तो ज़रूर होना है।
