Tuesday, July 15, 2008

चोट

- 16 December, 2006

चोट किजिए तो करारी किजिए -

चाहे कातिल निगाहों से -

या मीठी अल्फाजों से,

जवानी की पुकार से -

या फ़िर निर्मल प्यार से

खूबसूरत अंदाजों से -

या जुबां-ऐ-कटार से -


क्योंकि - जीते जी अगर

नस नस में दर्द न हो,

तो जानूं तो कैसे जानूं

ज़िंदा लाश हूँ -

या सिर्फ़ एक ख्वाब हूँ?

1 comment:

Anonymous said...

This one is my favorite....Its bitter-sweetness appeals to me...Keep writting..