- 11 September, 2006
वादों के उस अंजुमन में जब मैं तुझसे मिला
तेरे दर्पण में, मैंने ढेर सारे ख्वाब देखे
जिंदगी के हर एक साँस में तेरी खुशबु थी
तेरी छुवन ने मुझसे कहा - एक बार जी ले - फिर से।
रिश्तों के नाज़ुक धागों से बंधे हुए थे हम तुम
कहते भी तो क्या, और समझता भी कौन?
दिल की बातें दिल में ही रह गयी
लब खुले भी तो जुबां खामोश रही।
जीने की ख्वाइश भी थी, अपनों से प्यार भी था
दिन में काम काज कर लेता, शाम ढले तन्हाई आती
तेरे यादों में फिर से यह वीरान जिंदगी रंग जाती
और किसी पल थकान से टूटकर यह पलकें चूर हो जाती।
आज फिर वही खामोश रात, मिलने आई थी मुझसे
उसकी दस्तक में तेरे क़दमों की आहट थी
मेरे बिस्तर की सिलवटों को देख उसने पूछा
तेरे आंखों में यह अश्क किस खुशी के हैं?

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