- 16 December, 2006
चोट किजिए तो करारी किजिए -
चाहे कातिल निगाहों से -
या मीठी अल्फाजों से,
जवानी की पुकार से -
या फ़िर निर्मल प्यार से
खूबसूरत अंदाजों से -
या जुबां-ऐ-कटार से -
क्योंकि - जीते जी अगर
नस नस में दर्द न हो,
तो जानूं तो कैसे जानूं
ज़िंदा लाश हूँ -
या सिर्फ़ एक ख्वाब हूँ?

1 comment:
This one is my favorite....Its bitter-sweetness appeals to me...Keep writting..
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